Monday, August 24, 2015

पटना: ‘समस्यापूर्ति’




बाबा सुमेर सिंह ने पटना के बी.एन. काॅलेज के कुछ साहित्य-प्रेमी नवयुवकों के आग्रह पर पटना-कवि-समाजकी सन् 1897 में स्थापना की थी।1 इसकी स्थापना में बाबू शिवनन्दन सहाय का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था।2 कवि समाज के तत्वावधान में स्थानीय कवियों की गोष्ठी प्रायः खड्गविलास प्रेस के पुस्तकालय-कक्ष में होती थी। गोष्ठी की अध्यक्षता बाबा साहब करते और नवोदित कवि अपनी रचनाओं का पाठ करते थे। इसमें समस्यापूर्ति भी की जाती थी।3 ‘पटना-कवि-समाजका नियमित अधिवेशन चलता था जिसमें भाग लेने के लिए अक्षयवट मिश्र विप्रचन्दतख्त श्री हरमन्दिर जी पटना साहब के तत्कालीन महंथ साहिबजादा बाबा सुमेर सिंह, महाराजा अयोध्या के सचिव श्री जगन्नाथ दास रत्नाकर’, श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔधआदि अनेक कवि और साहित्यकार आया करते थे।4
कवि-समाजकी ओर से समस्या-पूर्ति नामक मासिक पत्रिका निकलती थी। यह पत्र खड्गविलास प्रेस से छपता था। इसमें हिन्दी के प्रख्यात कवियों के साथ ही नई पीढ़ी के कवियों और छात्रों की रचनाएं भी समस्यापूर्ति के रूप में प्रकाशित की जाती थीं। समस्यापूर्ति के संपादक थे आरा निवासी बाबू शिवनन्दन सहाय के पुत्र श्रीब्रजनन्दन सहाय ब्रजवल्लभ। इस पत्रिका ने काफी लोकप्रियता प्राप्त की और अपने प्रदेश ही नहीं देश के विभिन्न भागों से कविजन समस्यापूर्तियां भेजा करते थे।5 समस्या-पूर्ति के माध्यम से ब्रजभाषा साहित्य की श्रीवृद्धि में इस पत्रिका का उल्लेखनीय योगदान है। यह लगभग दो-तीन वर्षों तक प्रकाशित होता रहा। इसके कुछ अंक डा. धीरेन्द्रनाथ सिंह को खड्गविलास प्रेस के संग्रहालय में देखने को मिले थे।6
गया जिले के दाउदनगर निवासी पत्तनलाल सुशील’ (जन्म:सन् 1859 ई.) को समस्यापूर्ति के क्षेत्र में बड़ा यश प्राप्त हुआ था। आपकी पूर्तियां पटना और बिसवाँ (सीतापुर) के कवि-समाज के पत्रों में प्रायः छपा करती थीं। एक बार आपने बिसवाँ के कवि-मण्डल की छह समस्याओं की पूर्तियों में अपनी जीवनी का वर्णन किया था। वे पूर्तियां वहां के काव्यसुधाकर-पत्रके चैथे प्रकाश में, सन् 1900 ई. में छपी थीं।7 उनकी कुछ पूर्तियां समस्या-पूर्ति में भी प्रकाशित हुई थीं।8
महावीरप्रसाद द्विवेदी (बहेलिया बिगहा’, टेकारी, गया, जन्म: सन् 1856 ई.) की गणना हिन्दी और ब्रजभाषा के सफल पूर्तिकारों में होती थी। ब्रजभाषा के वीर और शृंगार दोनों रसों के आप सिद्धहस्त कवि थे। आपने आजीवन समस्यापूर्ति एवं काव्य-रचना के माध्यम से ब्रजभाषा एवं हिन्दी की सेवा में अपना समय बिताया। रसिक-विनोदिनी  (गया) एवं समस्यापूर्ति आदि पत्रिकाओं में आपकी समस्याएं बहुधा प्रकाशित हुआ करती थीं।9
दरभंगा जिले के सखवाड़गांव के वासी रघुनन्दन दास बबुए’ (जन्म: सन् 1861 ई.) की ब्रजभाषा में रचित समस्यापूर्तियां कविमण्डल (काशी), समस्यापूर्ति (सीतापुर, बिसवाँ), कवि और चित्रकार (फरूँखाबाद) और कवि-समाज (पटना) में प्रकाशित मिलती हैं।10
शाहाबाद जिले के अख्तियारपुरनिवासी शिवनन्दन सहाय (जन्म: सन् 1860 ई.) का हिन्दी में प्रवेश काव्य-रचनाओं, विशेषतः समस्यापूर्तियों के साथ हुआ था। काशी के कवि-मण्डलऔर कवि-समाजतथा कानपुर के रसिक-मित्र नामक पत्रिकाओं में आपकी आरंभिक रचनाएं प्रकाशित हुआ करती थीं।11 पटना की समस्या-पूर्ति में भी आपकी रचनाओं के उदाहरण देखे जा सकते हैं।12
पटना नगर स्थित रानीघाट, महेन्द्रू के वासी शिवप्रसाद पाण्डेय सुमति’ (जन्म: सन् 1887 ई.) की ब्रजभाषा और खड़ी बोली की पद्य-रचनाएं मुख्यतः पीयूस-प्रवाह, हिन्दोस्थान, पाटलिपुत्र, शिक्षा, रसिक-मित्र, रसिक-रहस्य, काव्य-सुधाकर, काव्य-सुधानिधि  आदि पत्र-पत्रिकाओं में छपा करती थीं।13 समस्या-पूर्ति से भी आपकी रचनाओं के उदाहरण मिले हैं।14
शाहाबाद जिले के अख्तियारपुरनिवासी सत्यनारायण शरण’ (जन्म: सन् 1870 ई.) की रचनाएं खड़ीबोली और ब्रजभाषा के अतिरिक्त भोजपुरी में भी मिलती हैं। आपकी कोई पुस्तकाकार रचना नहीं मिलती। स्फुट रचनाओं के उदाहरण समस्या-पूर्ति में मिलते हैं।15
गया जिले के कोइरीबारीमुहल्ले के निवासी हर्षराम सिंह हर्ष’ (जन्म: सन् 1867 ई.) एक काव्य-संगीत-मर्मज्ञ कवि थे। मूलतः आप समस्या-पूर्ति में बड़े सिद्धहस्त थे। काशी, कानपुर एवं गया से प्रकाशित तत्कालीन पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं देखी जा सकती हैं। समस्या-पूर्ति में आप नियमित रूप से प्रकाशित होते थे।16
पटना नगर के निवासी गुलाब दास (जन्म: 1859 ई.) की रचनाएं, विशेषकर पूर्तिया यथावसर भिन्न-भिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थीं। काशी के कवि-समाजमें आपकी बड़ी प्रतिष्ठा थी17 और पटना की समस्या-पूर्ति के तो आप नियमित लेखकों में थे।18
सारन जिले के रसूलपुरग्राम के निवासी जीवानन्द शर्मा की गद्य-पद्य रचनाएं यथावसर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्राप्त होती हैं। समस्या-पूर्ति को भी यह अवसर प्राप्त हुआ।19
श्यामलाल (जन्म: सन् 1888 ई.) गया जिले के पतियावाँ (ढिबरी) नामक ग्राम के निवासी थे। आपकी कविताएं सन् 1922 ई. में प्रकाश में आने लगी थीं। आपकी स्फुट कविताएं बांदा (बुन्देलखण्ड) से प्रकाशित शारदा-नन्दन और पटना से प्रकाशित होनेवाली मासिक पत्रिका समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।20
मुंगेर जिला के धरमपुर’ (जमुई) के निवासी श्रीकृष्ण प्रसाद हास्यरस और वीररस के विशिष्ट कवि माने जाते थे। आपके द्वारा लिखित समस्या-पूर्तियां मुख्यतः पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलती हैं।21
सारन जिले के अपहरगांव के निवासी अम्बिकाप्रसाद सिंह की ब्रजभाषा में रचित कवित्त और सवैये तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं, विशेषकर समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलते हैं।22
पटना जिले के करौतानामक ग्राम के वासी अयोध्या प्रसाद श्यामसमस्या-पूर्ति के नियमित पूर्तिकार थे। आपकी रचनाएं इस पत्रिका में प्रकाशित हुआ करती थीं।23
पटना जिले के खगौल (दानापुर) के वासी आनन्द समस्या-पूर्ति पत्रिका के नियमित पूर्तिकार के रूप में परिगणनीय हैं। सन् 1898 ई. की समस्या-पूर्ति में आपकी रचनाएं विशेष रूप से उपलब्ध हैं।24
पटना (बाँकीपुर) के चैहट्टानिवासी आनन्दबिहारी वर्मा की स्फुट रचनाएं समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलती हैं।25
गया जिले के बहेलिया-बिगहा’ (टेकारी) के वासी कन्हैयालाल पाठक की एक कवि के रूप में अच्छी प्रसिद्धि थी। आपकी कुछेक काव्य-रचनाएं 1897 की समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलती हैं।26
कृष्णदास महन्थ दरभंगा जिले के बसुआग्राम के वासी व पूर्तिकार थे। आपकी पूर्तियां समस्या-पूर्ति में सन् 1897 ई. में छपा करती थीं।27
पटना जिले के वासी कृष्णदेव के बारे में इतनी ही जानकारी उपलब्ध है कि आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं काशी और पटना के कवि-समाज की समस्या-पूर्ति में प्रकाशित हुआ करती थीं।28
गया नगर के निवासी केशवबिहारी वर्मा की कविता मुख्यतः ब्रजभाषा में होती थी। आप अपने युग के समस्या-पूर्तिकारों में एक थे। सन् 1897 की पत्रिकाओं में आपकी स्फुट रचनाएं उपलब्ध हैं। पटना की समस्या-प्रधान मासिक समस्या-पूर्ति में भी आपकी रचना के उदाहरण मिलते हैं।29
गणेश सिंह के बारे में इतनी ही जानकारी है कि आप हिन्दी में काव्य-रचना करते थे और आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं मुख्य रूप से पटना की समस्या-पूर्ति में प्रकाशित हुआ करती थीं।30
पटना जिले के सदीसोपुर’ (मनेर) के निवासी गयानन्द के द्वारा रचित पूर्तियां समस्या-पूर्ति में प्रकाशित होती थीं।31
पटना जिले के वासी गोवर्द्धननाथ पाठक नगके जीवन के संबंध में केवल यही मालूम है कि आप पटना-कवि-समाजके एक लब्धप्रतिष्ठ पूर्तिकार कवि थे और आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।32
दरभंगा जिले के वासी गोवर्द्धन सिंह ने हिन्दी कवियों के बीच अपना स्थान उस समय बनाया जिस समय समस्यापूर्तियों की स्वस्थ परंपरा सारे उत्तर भारत में व्याप्त थी। आपकी कविता पर ब्रजभाषा का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। आपकी कविता-शैली व भाषा-प्रयोग सशक्त है। सन् 1897 ई. की तत्कालीन भारत-प्रसिद्ध रसिक-मित्र और समस्या-पूर्ति नामक मासिक पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं उपलब्ध होती हैं।33
गया जिलान्तर्गत बहेलिया-बिगहा’ (टेकारी) के वासी गोवर्द्धन शुक्ल यारमूलतः एक कवि थे और आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं समस्या-पूर्ति में प्रकाशित हुआ करती थीं।34
शाहाबाद जिलान्तर्गत तेतरियानामक स्थान के निवासी चक्रपाणि मिश्र ब्रजभाषा में स्फुट काव्य-रचनाएं किया करते थे और वे रचनाएं अधिकतर समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।35
सारन जिलान्तर्गत डुमरीनामक ग्राम के निवासी जगन्नथ सहाय के बारे में सिर्फ इतना भर ज्ञात होता है कि आप एक सफल पूर्तिकार थे और मुख्यतः ब्रजभाषा में पूर्तियां किया करते थे। आपके द्वारा रचित पूर्तियां तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं, विशेषकर समस्या-पूर्ति में प्रकाशित हुआ करती थीं।36
जमुनाप्रसाद ओझा मुजफ्फरपुर जिले के बसन्तपुरनामक ग्राम के निवासी थे। आपके द्वारा ब्रजभाषा में रचित समस्या-पूर्तियां अक्सर पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।37
द्वारकप्रसाद पाठक पटना नगर के बाँकीपुर के वासी थे। आपके द्वारा ब्रजभाषा में लिखित स्फुट रचनाएं, विशेषकर समस्या-पूर्तियां मुख्यतः कवि-समाजकी पत्रिकाओं में प्रकाशित मिलती हैं।38
गया जिले के टेकारीके निवासी देवी अवस्थी ब्रजभाषा में काव्य-रचना, विशेषतः समस्या-पूर्तियां किया करते थे। आपकी रचनाएं पटना की समस्या-पूर्ति में अक्सर छपा करती थीं।39
दरभंगा जिले के निवासी देवीशरण एक सफल पूर्तिकार थे। आपके द्वारा ब्रजभाषा में रचित समस्या-पूर्तियां रसिक-मित्र, समस्या-पूर्ति आदि तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थीं।40
पटना नगर स्थित किलामुहल्ले के वासी नारायणदास ब्रजभाषा में सफल काव्य-रचना किया करते थे। आपकी रचनाएं अधिकतर पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में मुद्रित हुआ करती थीं।41
गया जिलान्तर्गत टेकारीके निवासी प्यारे मिश्र ब्रजभाषा के एक सुकवि थे और आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं, विशेषकर समस्या-पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में मिलती हैं।42
गया जिलान्तर्गत फिरोजपुरनामक स्थान के निवासी प्रभुनाथ मिश्र ब्रजभाषा और हिन्दी में काव्य-रचना किया करते थे। गया नगर के रसिक कवियों में आज भी आपका नाम आदर के साथ लिया जाता है। आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं, विशेषकर समस्या-पूर्तियां, साहित्य-सरोवर एवं समस्या-पूर्ति नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थीं।43
शाहाबाद के डुमराँवनामक स्थान के निवासी बदरीनाथ मिश्र की ब्रजभाषा में रचित कुछ समस्या-पूर्तियां पटना की समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलती हैं।44
बाबूनाथ आर्य बाँकीपुर, पटना के वासी थे और समस्या-पूर्ति में गहरी दिलचस्पी रखते थे। आपकी पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में देखने को मिलती हैं।45
छपरा नगर के रतनपुरानामक मुहल्ले के वासी बिहारी सिंह की गणना अपने समय के अच्छे कवियों में होती थी। स्थानीय कवि-मण्डल-समाजका आप संचालन भी किया करते थे। उक्त साहित्य-गोष्ठी के तत्वावधान में प्रकाशित मासिक समस्यापूर्ति-प्रकाश में आपकी अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई थीं। आपकी स्फुट रचनाएं काशी की तत्कालीन पत्रिकाओं के साथ-साथ पटना की समस्या-पूर्ति में भी मिलती है।46
ब्रजमोहन बटुक गया जिलान्तर्गत टेकारीनामक स्थान के निवासी थे। आपकी गणना सफल पूर्तिकारों में होती थी। आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं, मुख्यतः समस्या-पूर्तियां पटना से निकलनेवाली समस्या-पूर्ति में बटुकउपनाम से प्रकाशित हुआ करती थीं।47
गया जिलान्तर्गत बरहेताग्रामवासी ब्रह्मलाल मिश्र की ब्रजभाषा में रचित समस्या-पूर्तियां पटना की समस्या-पूर्ति में प्रकाशित होती थीं।48
पटना जिला के भदसराग्रामवासी भगवानशरण पाण्डेय मुख्य रूप से ब्रजभाषा में काव्य-रचना किया करते थे। पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति पत्रिका में आपकी स्फुट रचनाएं देखने को मिलती हैं।49
सारन जिले के निवासी महावीर पाण्डेय द्वारा लिखित स्फुट काव्य-रचनाएं अधिकतर पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में देखने को मिलती हैं।50
बाँकीपुर, पटना के महेन्द्रनारायण वर्मा तत्कालीन पूर्तिकारों में परिगणनीय थे। आपकी स्फुट काव्य-रचनाएं, मुख्यतः समस्या-पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।51
सारन जिला के परसानामक ग्राम के वासी मुखलाल राम गुप्त ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनों ही में रचनाएं किया करते थे। काव्य-रचना के माध्यम से आपको पर्याप्त यश प्राप्त हुआ था। सुकवि के आप प्रतिबद्ध कवि थे। आपकी काव्य-रचनाएं रसिक-मित्र एवं समस्या-पूर्ति में नियमित रूप से प्रकाशित हुआ करती थीं।52
सारन जिला के सिताबदियारावासी रघुनाथशरण सिंह द्वारा लिखित स्फुट काव्य-रचनाएं पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में देखने को मिलती है।53
शाहाबाद के नन्दपुरनामक ग्राम के वासी राजपति तिवारी की कोई पुस्तकाकार रचना नहीं मिलती, केवल कुछ स्फुट काव्य-रचनाएं पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में मिलती है।54
दरभंगा के मनिगाछीके निवासी विश्वनाथ झा की समस्या-पूर्तियां खूब प्रशस्त हुईं। आपकी गणना ब्रजभाषा और खड़ीबोली के सशक्त कवियों में होती थी। आपकी कविताएं कानपुर से प्रकाशित रसिक-मित्र तथा पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।55
बसुआड़मधुबनी के शिवनारायणदास कृष्णखड़ीबोली और ब्रजभाषा दोनों में काव्य-रचना किया करते थे। इनमें अधिकांश समस्या-पूर्तियां ही रहा करती थीं। आपकी रचनाएं कृष्णऔर जयकृष्णदोनों ही नामों से उपलब्ध होती हैं। आपके द्वारा की गई पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति तथा काव्य-सुधाधर नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करती थीं।56
शिव प्रसाद छपरा निवासी थे। आपकी कोई पुस्तकाकार रचना ज्ञात नहीं है। केवल कुछ स्फुट रचनाएं ही प्राप्त होती हैं, जिनमें अधिकांश समस्या-पूर्तियां ही हैं। आपके द्वारा लिखित पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।57
श्रीकांत मिश्र छपरा शहर के रतनपुरामुहल्ले के पूर्तिकार थे। आपकी कोई पुस्तकाकार रचना नहीं मिलती। आपकी समस्या-पूर्तियां पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।58
गया जिले के सिकन्दरपुर’ (कुरथा) नामक ग्राम के वासी सन्तप्रसाद सन्तपटना-कवि-समाज के एक पूर्तिकार थे। आपकी समस्या-पूर्तियां उक्त समाज की पत्रिका समस्या-पूर्ति में छपा करती थीं।59
शाहाबाद के हरीपुरनिवासी सहदेव लाल एक पूर्तिकार थे। आपकी भी पूर्तियां अधिकतर समस्या-पूर्ति की ही शोभा बढ़ाती थीं।60
सूर्यनाथ मिश्र नाथगया जिले के वासी और पूर्तिकार थे। आपकी कुछेक रचनाएं काव्य-सुधाधर और रसिक-मित्र में मिलती हैं। आपकी अधिकांश स्फुट काव्य-रचनाएं समस्या-पूर्ति में प्रकाशित मिलती हैं।61
गया जिले के परैयानामक गांव के वासी हरख सिंह मगही के अतिरिक्त ब्रजभाषा और खड़ीबोली में काव्य-रचनाएं किया करते थे। आपकी कविताएं समस्या-पूर्ति आदि पत्रिकाओं में छपा करती थीं।62
हरिकान्तनारायण चैधरी बल्लीपुरदरभंगा के निवासी और पूर्तिकार थे। आपकी गणना सफल पूर्तिकारों में होती है।  आपकी रचनाएं पटना से प्रकाशित समस्या-पूर्ति में जगह पाया करती थीं।63
शाहाबाद जिला के मुरारनामक स्थान के वासी रघुवीर प्रसाद (रघुवीरशरण प्रसाद) की स्फुट रचनाएं समस्या-पूर्ति में मिलती हैं।64
संदर्भ एवं टिप्पणियां:
1. डा. धीरेन्द्रनाथ सिंह, ‘आधुनिक हिन्दी के विकास में खड्गविलास प्रेस की भूमिका, पृष्ठ 134
2. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 593, पा.टि. 1
3. डा. धीरेन्द्रनाथ सिंह, ‘आधुनिक हिन्दी के विकास में खड्गविलास प्रेस की भूमिका, पृष्ठ 134
4. श्री मुरली मनोहर मिश्र, ‘बिहार में हिन्दी-पत्रकारिता का विकास पृष्ठ 106-07
5. श्री मुरली मनोहर मिश्र, ‘बिहार में हिन्दी-पत्रकारिता का विकास, पृष्ठ 107
6. डा. धीरेन्द्रनाथ सिंह, ‘आधुनिक हिन्दी के विकास में खड्गविलास प्रेस की भूमिका, पृष्ठ 185
7. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 252-53, पा.टि. 1
8. (क) आये हैं सुसील प्यारे मौन बड़े भागन तें,/सकल हँसीली हौंस हिय की निकारि लै।/निज नित पूज्य देवी महरानी तासु/आज उदयापन की साइत बिचारि लै।।/फेरि कौन जानै या संजोग कौन जोग जुरै/बहती नदी में अब पायन पखारि लै।/टारि पट घूँघट को सब री निवारि सोच/साँवरी सलोनी छबि नैनन निहारि लै।।’-पत्तनलाल सुशील’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, अप्रैल, सन् 1897 ई., पृष्ठ 3; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 255-256)। (ख) जात है बिदेस मनभावन तिहारे चले,/साइत समै पै भलि खेद न बिचारि लै।/बिरह बिखाद बिथा नित सहबोईं तोहि,/प्यारी इहिकाल नेकु चित्त को सँभारि लै।।/फेरि कौन जानै कौन दिन ये फिरैंगे दिन/दिन-दिन रुअै को छिन आँसुन निवारि लै।/भेंट लगि अंक लै सुसील लाज संक मेटि/आनन मयंक भरि नैनन निहारि लै।।’-पत्तनलाल सुशील’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, अप्रैल, सन् 1897 ई., पृष्ठ 3; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 256)। (ग) सुनि सखियँन की सीख सुमुखि सुसीलजूपै,/पान देइबे को चली छलकत ओज है।/पैढ्यौ परजंक पिया बीरी लेत बाँह गही,/खैंची निज ओर गयो उघरि उरोज है।/पगी प्रेम प्यारी अंग पुलकि पसीजि उठे,/चकित चितौति चित चाव भरी चीज है।/बढ़ति न आगे नाहि पाछे ही हटति नेक,/एक पद लाज एक खैंचत मनोज है।’-पत्तनलाल सुशील’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, सन् 1897 ई., पृष्ठ 1; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 256-257
9. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 360। (क) ऊधो आए गोकुल में सीख देन गोपिन को,/कह्यो भोग आस तजि योग तन धारि लै।/नाम बनवारी को जपहु दृढ़ प्रेमकारि,/मोहतम भारी को सुजर ते उपारि लै,/द्यौसनिसि जप-तप-संयम-नियम-व्रत,/करि उपचारि काम-कोह-मोद मारि लै,/‘महावीर सबघट वासी सुखराशि श्याम,/बसे उर तेरे ज्ञान नैनन निहारि ले।’-महावीरप्रसाद द्विवेदी, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जुलाई, सन् 1897 ई., पृष्ठ 18; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 361
10. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 395। (क) पौन पछाँह प्रसून प्रफुल्लित पीक पुकार रसाल की डार।/मौर झरे मकरन्दन मोदित होत अलीगन की झनकार।।/गैलन हूँ रघुनाथ गुनी निगुनी सब गावत राग धमार।/प्यारी संयोगिनी का सुख औ बिनु प्यो दुख देत बसंत बहार।।’-रघुनन्दन दास बबुए’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, फरवरी, सन 1897 ई., पृष्ठ 22; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 396। (ख) बागे बनी दल मौर सुमौर सजे तरु आस हिय सुखसार।/प्यारी लता परिरम्भन के ललचे रघुनाथ झुके भुजडार।/पुष्पवती लतिका लपटी तरु प्रीतम अंग उमंग अपार।/जागत है जब जीवहुँ के हिय काम बिलोकि बसन्त बहार।।’-रघुनन्दन दास बबुए’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, फरवरी, सन 1897 ई., पृष्ठ 22; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 396। (ग) प्यारे प्रभात द्रिगें अलसात हिये सकुचात मिले निज बाल सों।/यामिनि जागनो जानी तिया लखि अंजन होठ महावर भाल सों।/आनि कै आदर तें कर आरसि दै निज रास जनावति ख्याल सों।/लाल के हाथ सों लैके रूमाल सों पोछें गुलाल है लाल के गाल सों।।-रघुनन्दन दास बबुए’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, मार्च, सन 1897 ई., पृष्ठ 8; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 397। (घ) कौतुक नेक लखो उत जाइ कै तीर कलिन्दि कला उमगी रहैं।/दीठ दलाल के दौर दोऊ दिस रीझ रिझावन मांह लगी रहे।/मोहन को मन मानिक मोल दै गाहक होन की चाह लगी रहै।/आवति ज्योंही लली सखि संग लौं घाट पै रूप की हाट लगी रहै।’-रघुनन्दन दास बबुए’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जनवरी, सन 1898 ई., पृष्ठ 7; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 397                                                                                        11. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 593
12. (क) चन्द को है भास नाहीं मुख को प्रकाश यह,/नीलिमि अकास नाहीं सारी नील बोरी की।/नखत उदोत नाहीं भूषन की जोति होति,/तारा है गिरे ना खंसे वेंदी भाल गोरी की।।/पुष्प खस बास नाहीं स्वांस को सुबास जानों,/कोकिला न बोलै बानी स्यामचित चोरी की।/चाँदनी न फेली सिव भाखत हैं साँच साँच,/अंगदुति फैलि रही कीरति किसोरी की।।’-शिवनन्दन सहाय, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जनवरी, सन 1897 ई., पृष्ठ 6; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 597। (ख) रचि कै बिधि मोको रूपवती, कियो मोपै कहा उपकार भला है।/डिग झौंरत भौंर को झुंड सदा, कच खोंच कै मोर करै विकला है।।/सिव आनन चोर चकोर करै, सुक ठोढी पै जान रसाल फला है।/अरु छाँह सी संग मो डोलो करै, बरजे नहीं मानत नन्द लला है।।’-शिवनन्दन सहाय, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जनवरी, सन 1897 ई., पृष्ठ 7; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 598। (ग) कहुँ बैर सुपारी नरंगी लसै, कहुँ श्रीफल की सुछटा उमगी रहै।/सुठि सेव रसाल कहूँ दरसै, कहुँ दाने अनार की जोति जगी रहै।/लखि मीन कहूँ अरु बिम्ब कहूँ, मति भोरहिं ते सिवजूकि ठगी रहै।/दिल दाम दियेहुँ न वस्तु मिलै, जँह घाट पै रूप की हाट लगी रहै।’-शिवनन्दन सहाय, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जनवरी, सन 1898 ई., पृष्ठ 1; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 598
13. ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 603
14. (क) यमुना निकट तट विटप कदम्ब चारु,/चामी वर रचित खचित रत्न जोरे में।/भूलन को झूला लाल लाडिली लगायो आजु,/ताहि लटकायो लाल रेशम के डोरे में।।/पीत पट ओढ़े घटा धूप सों सुहात श्याम,/दीसति ललीहू दामिनी ज्यों घन घोरे में।/हरित लता सों ललिता सों सुखमा अथोर,/झूमि-झूमि देखों भट्टझूलत हिंडोरे में।।’-शिवप्रसाद पाण्डेय सुमति’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, जुलाई, सन 1897 ई., पृष्ठ 3; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 606। (ख) काहे तेरे उरज अलेप हैं दिखात दोऊ,/काहे तजे बंधन सुकेश हूँ तिहारे हैं।/काहे निरगुनी भई कर्धनी तिहारो वीर,/काहे ते निरंजन नसीले नैन प्यारे हैं।।/काहे तेरो अधर सुरागहू तज्यो है निज,/परम अनन्द अंग तेरे तिमि धारे हैं।।/कोऊ गुरू ज्ञानी काम तत्त्व को सुतेरे गात,/चेरे करि रात कहा प्रात ही सिधारे हैं।।-शिवप्रसाद पाण्डेय सुमति’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, दिसम्बर, सन 1897 ई., पृष्ठ 3; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 606
15. ‘सारी गुलवारी लगी मोतिन किनारी रति,/रंभा छवि हारी द्युति निंदत तमारी की।/भूणन सँवारी है गयंद गतिवारी होत,/छवि है न्यारी केश बेश लकवारी की।/अति सुकुमारी प्यारी छाम लंकवारी सो,/सिधारी गुन वारी जुरी गोल बनवारी की,/गारी देत ग्वारी किलकारी तारी दै दै कर,/मुरि मुसुक्याय मारी चोट पिचकारी की।।’-सत्यनारायण शरण’, ‘समस्या-पूर्ति, पटना, मार्च, सन् 1897 ई., पृष्ठ 20; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 640
16. (क) नई गौनहिं आई अहै नवला, पट तानि अटा चढ़ि सोवति है।/धुनि कान परै पिय के पग की, हिय कँप उठै मुँह मोरति है।।/हरखू हरखाय कहै रसबात तो, आँसुन ते तन धोवति है।/सब कोनहि कोन चिरीं सी फिरे, कहि नाहीं नहीं दम खोवति है।’-हर्षराम सिंह हर्ष’, ‘समस्यापूर्ति, पटना, अगस्त, सन 1897 ई., पृष्ठ ...; ‘हिन्दी साहित्य और बिहार, तृतीय खंड, पृष्ठ 678। (ख) असगुन दिखाय अब मोको अनेक हाय/फरकत बाम बाहु ऐसे में बचैया को।/सपने में रात रुण्ड लैके कृपाण ढिग,/बार-बार कहे सठ तेरो है सहैया को।।/गढ़ पै गुमान करि गीध गण लोट जाय,/बोलत शृगाल स्वान साँझ ही समैया को।/पूछे कंसराय घबराय हर्षरामहूँ ते,/सांचो कहो भयो कहा जनम कन्हैया की।।’-हर्षराम सिंह हर्ष’, समस्यापूर्ति’, पटना, अगस्त, सन 1897 ई., पृष्ठ 8; हिन्दी साहित्य और बिहार’, तृतीय खंड, पृष्ठ 679
17. देखें, बिहार-प्रान्तीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, पटना के तृतीय अधिवेशन के अवसर पर सभापति श्री शिवनन्दन सहाय द्वारा दिया गया भाषण, पृष्ठ 67; हिन्दी साहित्य और बिहार’, पृष्ठ 56, पा.टि. 3
18. (क) काहे कहै नहिं मोसों लली भल भापनो नाहि भले तू विचार ये,/जो सुनि पैहों तो कैहों उपाय महादुख होत दसा तो बिहार ये।/दासकहै तन-कानन को सुनु चिन्तन आग बनावत छार ये,/धूम उठै नहि ऊपर से धुधकै उर माहि अधूम अंगार ये।।’-गुलाब दास, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 57। (ख) लै अलि संग सिंगार किये वृषभान लली चली हंस की चाल सों,/सारी सुरंग सजी अँगिया कर में पिचकारी जड़ी मनि-लाल सों,/‘दासभनै मग में मिलते ललकारि कै होरी मचाई गुपाल सों,/बाल सो देखत ही सबके धरि मींजो गुलाल को लाल के जाल सों।।’-गुलाब दास, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 57। (ग) गहिकै कर ल्याई नई दुलही वह भेद कछू जिय जानति ना,/लखिकै परंजक पै प्रीतम कों सखियान की सीखहिं मानति ना।/उझकै-झिझकै कवि दासकहै मुख नाह को ओरहिं आनति ना,/डरपै कर पै कर को पटकै मचलाय रही रति ठानति ना।।’-गुलाब दास, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 1; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 57। (घ) पूछति जाय परोसिन सों हमरे उर पै सखि कान्ह भयो है,/नेकहु पीर करै न अरी बिधिना मुहि कौन धौं रोग दयो है।/बाढ़त जात अचानक ये कवि दासजूसोच सों चित्त छयो है,/औषधि जानति हौ तो करो सजनी अबहीं यह घाव नयो है।।’-गुलाब दास, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 1; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 57। (च) आवति आज कहाँ ते लली तव आनन की दुति है कुम्हिलानी,/संग में काऊ सहेली नहीं बेरिया यह नाहीं भरे कर पानी।/कंचुकी ढीली बुझात कछू अरु गाल पै पीक की लीक निसानी,/‘दासहमैं अस बूझि परै धरिकै ब्रजराज करौ मनमानी।।’-गुलाब दास, समस्या-पूर्ति’, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 2; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 58
19. (क) चातक चकोर पिक मधुप पपीहा सोर करत संगीत रीत रास बरसात है।/पीत पट पेन्हि लायो दादुर मृदंग धुनि मोर पटचित्र पेन्हि नाचि सरसात है।।/झींगुर लै झाँझ बक पाँती लै पताका साजि धुधुक धमकि मेह मन तरसात है।/जीवानन्दचपला के पानिको गहन आयो सुन्दर बरात साजि वर बरसात है।।’-जीवानन्द शर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, जून, 1897 ई., पृष्ठ 7; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 84। (ख) कहति न कित छल करति पुनि दुरैन दुरबै नेह/जलन कोटि करि बिज्जु को छादन करत न मेह।।’-जीवानन्द शर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवंबर, 1897 ई., पृष्ठ 15; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 85। (ग) दिन चार भये यह देस के लोग किये सुख सो कहि जात नहीं,/अब हाय सोई छिति छाय गयो दुख छूटत सो दिन-रात नहीं।/वह काह भयो सब सुन्दर पौरुष बेदन ते कछु नात नहीं,/सब तोंद फुलाय बड़े हैं बने पर भीतर सार दिखात नहीं।।’-जीवानन्द शर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, दिसंबर, 1897 ई., पृष्ठ 18; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 85
20. (क) बाजै दरबाजै बहुदुन्दुभी नगाड़ा ढोल,/ढाक मुरचंग चंग रंग सरसैया को।/भाण भाट भीर भारी नटहूँ नटी की जहाँ,/कौन गिनै गान तान आन ही गवैया को।/श्यामलालपरम प्रमोद मन नन्द बाबा,/देत द्विज दान धन-धान तिमगैया को।/गोकुल रखैया ब्रज चन्द यदुरैया दैया,/सुदिन समैया आज जनम कन्हैया को।।’-श्यामलाल, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 21; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 105। (ख) तन कमौ लखि लाल को, खेद बुंद उर छाय,/दैया री दुख कौन भो, भेद जानि ना जाय।।’-श्यामलाल, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितंबर, 1897 ई., पृष्ठ 12; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 105
21. (क) आयो जग बीच जोपै मानुष को पाय तन,/मेरी कही मान काज आपनो सँवारि लै।/धन को कमायो परनाम को न गायो कबौ,/एक बारहूँ तो भैया राम को उचारि लै।।/तीरथ तप दान पै एक ना कियो तू हाय,/पैहो जमदण्ड औसि बात या बिचारि लै।/कहत है कृष्ण याते जाय जगन्नाथ,/धाम जगतपती को रूपनैनन निहारि लै।।’-श्रीकृष्ण प्रसाद, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 24; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 106-7। (ख) घुमड़ि घुमड़ि घटा नभ में उमड़ि आइ,/भयो है मुदित मन लोग औ लुगैया को।।/बन उपवन सब कुस्मित दिखान लागे,/ताहि माँहि भयो बास मधुप लुभैया को।।/जल भरे नारे नदी पपिहा पुकारे लगे,/चारो ओर शब्द होत भेष समुदैया को।।/ऐसे ही सुदिन कृष्ण भाद्रमास अष्टमी में,/देबकी के गेह भयो जनम कन्हैया को।।’-श्रीकृष्ण प्रसाद, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 19; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 107
22. ‘तरनि-तनुजा तीर भीर भई भारी आज,/फाग खेलिबे की तहाँ सबनी तियारी की।/एक ओर ग्वाल सँग नवल छबीले स्याम,/एक ओर राधिका नवेली सँग ग्वारी की।/रंग बरसावत उड़ावत अबीर कोऊ,/गावत कबीर तापै धुनि करतारी की।/मलत-मलावत अबीर रसराज कोऊ,/लोट-पोट होत खाय चोट पिचकारी की।।’-अम्बिकाप्रसाद सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, 1897 ई., पृष्ठ 15; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 115
23. ‘चतुर किसान काम मोसम सुवारि पर,/डारे कर चाह्यो सब बिधि बहुबारि लै।/दसम बरस रस बीज दीनै बोय अरु,/सींच दीनै लाज नीर बीर उर धारि लै।।/युवा के दिवाकर को घाम पर्यौ तापर सौं,/जम्यो वह बीज हिय आपनों बिचारि लै।/अंकुर प्रथम यह निवस्यौ उरोजन पै,/नाहिं पतिआय आय नैनन निहारि लै।।’-अयोध्या प्रसाद श्याम’, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 6; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 118
24. ‘साँवरि गोरी अनोखी सखी जम्हुआत कोउ जनु रति जगी रहै।/बावरी सी घट सीस लिए गजगामिनि जावकभार जगी रहै।/आबतजात सुचन्द-मुखी छवि चंचलता दृग देखि ठगी रहै।/प्रात आनन्दजूसाँझ दुनी पनिघाट पै रूप की हाट लगी रहै।’-आनन्द, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1898 ई., पृष्ठ 10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 124
25. (क) अब पूरी भयो है वियोग को टर्म अकारन जी हरखात नहीं।/छायो चारहूँ ओर आनन्दअहै सुख को कछु सीमा लखात नहीं।।/बदरा दुख की तो बिलाय गयो कछु लेख तो बाकी जनात नहीं।/पर काहे विलम्ब भयो परजंक पै पूनो को चन्द दिखात नहीं।।-आनन्दबिहारी वर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 13; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 125। (ख) आवत तुरन्त नास्यो अलभ विवेक या,/काटि चेतना को अति ऊधम मचायो है।/धीरज धसकि धरा-धामते सिधार्यो झट,/भागि डरै आनन्दजूखोज याँ लुकायो है।/लाय दुःख-सेनापति बाहन लग्यो है ताहि,/भरन सरन इक याही ने सिखायो है।/छायो हलचलो सो है गदर मचायो हाय,/विषय वियोग बीर रूप धरि आयो है।’-आनन्दबिहारी वर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1898 ई., पृष्ठ 13; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 126
26. (क) झिल्लिन की झनकार अपार औ जोगन-जोति भलो दरसात है।/छाई घटा चपला चमकै बहु बृन्द सिखंडिन के हरखात है।।/फूले कदंब जुही चहुँ ओरनि झोंकैं प्रभंजन की सरसात है।/कान्ह झुलाय कहैं प्रिय सों यह कैसी अनोखी लसैं बरसात है।।’-कन्हैयालाल पाठक, समस्या-पूर्ति’, मासिक, पटना, जून, 1897 ई., पृष्ठ 18; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 130। (ख) सोभित बिचित्र कलधौत के जुगल खम्भ,/बिद्रुम की डाड़ी जड़े रतन अथोरे में।/रेसम की डोरी हैं पिरोए ठौर-ठौर मनि,/पत्ता की सपाटी पद्मराग लगे छोरे में।/बादले बितान तने झालरैं झमकदार,/झार औ फनूस की जलूस चहुँ ओरे में।।/सखियाँ प्रमोद-युत मृदंग बजावैं-गावैं,/अंक लैं झुलावैं कान्ह प्यारी को हिंडोरे में।।’-कन्हैयालाल पाठक, समस्या-पूर्ति’, मासिक, पटना, जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 18; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 130। (ग) गई आजु कहाँ बड़ भोरही तू, नँदगाँव की ओर लै छीर-दही।/मग में तोहि भेंट भई किन सों, करी तेरी सिँगार सँवार तहीं।/बहरावति आजु लौं मोको अली, बतरावति मों सो न काहे सही।/कहा मासे छिपावति एरी सखी, गुँधी बेनी तिहारी दिखात नहीं।।’-कन्हैयालाल पाठक, समस्या-पूर्ति’, मासिक, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 130-31। (घ) कोउ माने न मात-पिता औ गुरु, निगमागम को चरचा न कहीं।/जप यज्ञ औ दान ना कोऊ करै, बढ़्यो पाप महा थहरात मही।/यह ऐसी अनीति बसुंधरा पैं, हरि कैसे निहारि कै जात सही।/कलिकाल कराल बेहाल कियो, कहुँ धर्म को लेस दिखात नहीं।।’-कन्हैयालाल पाठक, समस्या-पूर्ति’, मासिक, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 131
27. आपकी उपलब्ध दो पंक्तियां इस प्रकार हैं: है आनन्द अपार, बृन्दावन की कुंज में,/जहाँ कृष्ण औतार, नित नव मंगल होत है।’-कृष्णदास महन्थ, समस्या-पूर्ति’, मासिक, पटना, मई, 1897 ई., पृष्ठ 10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 139, पादटिप्पणी 4
28. ‘मध्य में सरोवर है कूल में सुकूल फूलै,/आवत सुगंध मंद पवन झकोरे में।/सुन्दर बनी हैं संगमरमर की बेदी तहाँ,/तापर प्रवाल थंभ लसे कंज कोरे में।।/हेम के सिंहासन जड़ित नव नग तामें,/पटुली विचित्र लगे रेशम के डोरे में।/देखि-देखि जन्म निज सफल करूँगी आज,/राधिका समेत कृष्णझूलन हिँडोरे में।।-कृष्णदेव, समस्या-पूर्ति’, पटना, जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 4-5; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 140
29. ‘जब तें सुचंदमुखी छाड़ि गई पीहर कौ,/तब ही ते पावस प्रताप प्रगटायो है।/भोंकि-भोंकि बूँदन की बरछी निकारैं प्रान,/मानस तें धीरज-विवेक को भगायो है।/चमक चमाचम सु बिजुरी दिखात साथ,/पाप कै अनाथ सोई असि चमकायो है।/केशवकहत यह बंधन वियोगी काज,/पावस दुखद बीर रूप धरि आयो है।।’-केशवबिहारी वर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 15; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 144
30. (क) बोलत चातक मोर, घन दामिनी दरसात है।/दम्पति हरख अथोर, लखि आई बरसात है।।’-गणेश सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, जून, 1877 ई., पृष्ठ 20; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 153। (ख) लाज सतावै बैन को, बदन मदन को जोर।/दोउन के उत्पात में, तिय-उर होत मरोर।।’-गणेश सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1877 ई., पृष्ठ 4; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 153। (ग) आई कोऊ ग्वालिनी दुआरे नन्दजू के प्रात,/देखती खरी है छटा नन्द अँगनैया को।/कोऊ दधि-माखन लुटावै लिये भाजन सों,/बेसुमार लागी है कतार पहुनैया को।।/बाजत मृदंग-राज गावैं गुनी लोग बैठ,/भनत गनेसनन्द दान देत गैया को।/आनँद उमंग भरि सोहरा उचारैं नारि,/हरख भयो हैं सुनि जनम कन्हैया को।।’-गणेश सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 4; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 153
31. ‘पावस बहार में पुकार कीर कोकिल में,/काम-बान बेर-बेर बेधै उर मोरे में।/रैन अँधियारी जोर जीवन के भारी भई,/करूँ हाय का री प्रान पर्यो दुख घोरे में।/गोबिन्दजू भूल गये कूबरी के होय बस,/मेरो चित्त रहे पर वाहि चितचोरे में।/गयानन्ददया धारि सुख दें गोपाल जब,/आनन्द अमन्द होय तब ही हिंडोरे में।।’-गयानन्द, समस्या-पूर्ति’, पटना, 2 जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 4; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 155
32. (क) ऐसी कौन नारी ब्रज पावै जौन समता की,/अंजन अनूप छबि लागत है गोरी की।/जैसही लुनाई सुंदराई अंग-अंगन पै,/तापै दुति दूनी देति बिन्दु भाल रोरी की।।/रमा रति मैनका मनायो कापे कहो जाय,/बार-फेर कीनी मैं इकट्ठी करोरी की।/कवि नगकाह कहि सकै मुख एक ही तें,/तीनों लोक छाई कीत्र्ति कीरति-किसोरी की।।’-गोवर्द्धननाथ पाठक नग’, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 165। (ख) बनिता बियोगिन सों बैर कै बसंत बीर,/बने-बन-बागन फुलायो द्रुम डार ये।/तैस ही लतान-बेलि पीय-तरु उदै देखि,/मंजरी प्रबाल-गुच्छ कीनी है सिँगार ये।।/पाय के पलास अति तीखे नख केहरि-से,/चाहैं दैन जुवति के हृदय बिदार ये।/कबि नगदूजे देख किंसुकन फूले लाल,/मानों देह-दाहन को अधूम अँगार ये।।’-इसी भाव का आपके द्वारा रचित यह दोहा भी देखिएः किंसुक सुमन सुरंग, फूलि-फूलि झुकि डार ये।/जारत बिरहिन अंक, मनो अधूम अँगार ये।।’-गोवर्द्धननाथ पाठक नग’, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 11; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 166, पा.टि.1। (ग) सासु संग सोई हुति सुंदरी सलोनी बाल,/कोठरी इकंत जहाँ दीपक जरत हैं।/ननद जिठानी देवरानी पड़ी आसपास,/छाड़ि छिन कोऊ नाहिं पास से टरत हैं।।/जानिकै निसब्द पायँ पायल उतारि सेज,/पीय पै चली पै डेग-डेग ही डरत हैं।/कवि नगखोंखी सुनि नोखी नारि लाज-भरी,/काठ ह्वै न आगे पाँव पाछे ना धरत है।।’-गोवर्द्धननाथ पाठक नग’, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 3; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 166। (घ) कोक-कला-रस सों सबला,/प्रबला अबला इक अंबुज रंगम्।/सुन्दर सूरत में बिमला,/कमला सम चंचल नैन कुरंगम्।।/और कबी नगकाह भनै,/जिय बेधति है भ्रुव तानि निषंगम्।/अंग अनंग-उमंग-भरी,/पिय संग करै बिपरीति प्रसंगम्।।’-गोवर्द्धननाथ पाठक नग’, समस्या-पूर्ति’, पटना, जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 2; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 166। (ङ) काह कही दिन द्वै कहि तें,/उर मेरे उतंग कछू ये दिखात है।/कोर बँधे चहुँ ओरन तें,/कठिनाई अरू अरुनाई लखात है।।/पूरब की जू सियो अँगिया,/‘नगतेऊ न अंगन देखौ समात है।/जानि परे नहि कौन भये,/ब्रन फूटैं पकै नहिं नेकौ पिरात है।।’-गोवर्द्धननाथ पाठक नग’, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 1; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 167
33. (क) पाबस में रितु ग्रीषम आय तपायो धरा जनु डार अँगार,/सूख्यो धान भदै तबही अब सूखत भूख तें लोग हजार।/कान्ह तो कान में रूई दईं तब कौन सुने है हमार पुकार,/आरत हैं कहते सबही जब अन्न नहीं तब कौन बहार।।’-गोवर्द्धन सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 28; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 168। (ख) छबि भौन को दीपक दीपति दिव्य सो सौति पतंग कहा सहिहै,/निज पीव को प्रेम पियूष प्रवाहहि मै मन मीन सुखी रहिहै।/गरुता तन सील सँकोच-भरी अधराहि लौ अवधि कथा गहिहै,/जग दुर्लभ है अस नारि गोवर्द्धन पुन्न-प्रभाव कोऊ लहिहै।।’-गोवर्द्धन सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 23; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 168। (ग) साँझहि साजि सुचाल गयंदऽरु काम को स्यन्दन पै चढ़ि जाहीं,/कौच सनेह नगारे हैं नूपुर बीर उरोज खड़े अगुहाहीं।/सैन को बान कमान भुरू दोऊ पाटी सुढाल विसाल लखाहीं।/प्रात लौं प्रानप्रिया सँग में रति-जंग करै रमनी विधि याहीं।।’-गोवर्द्धन सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 15; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 168
34. ‘आप तो कृपाल अरु सोभित बिसाल नैन,/तीसरे मों ज्वाल-जाल तापै गंग-धार है।/महिमा अपार जाको बेदहूँ न पावै पार,/सेस औ सुरेस सारदा की मति हार है।/देव-नर-किन्नर प्रताप कहाँ यारजानैं,/नाम के प्रभाव सुनो साचों बेसुमार है।/अति है दयाल प्रभु सबहीं निहाल करैं,/संभु उर धारैं तिन्हैं आनन्द अपार है।।’-गोवर्द्धन शुक्ल यार’, समस्या-पूर्ति’, पटना, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 169
35. ‘एक समय वृषभान-लली,/रँग खेलिकै जाति हुती वृजबाल सों।/गैल धर्यो कर नन्दलला,/तब धीरे कही यह बाल गोपाल सों।/आवति हैं नन्दरानी इतै,/सुनि मिश्र मुरारि चलै ज्यौं उताल सों।/आँगठ को दिखराइ भजी,/हँसि भींड़ गुलाल सु लाल के गाल सों।।’-चक्रपाणि मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, 1897 ई., पृष्ठ 12; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 172
36. ‘अपनो अहवाल कहा मैं कहों,/मुख ते कछु आवत बात नहीं।/जब ते पिय छाड़ि गये हमको,/दुख वांदिन ते तजि जात नहीं।।/बिपती निज रोइ कहों सों,/जगन्नाथजी पत्र पेठात नहीं।/सब भाँतिन सोच-विचार रही,/पर आवन आस दिखात नहीं।।’-जगन्नाथ सहाय, समस्या-पूर्ति’, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 15; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 182-83
37. (क) प्रीतम जाय बिदेस बसे इत,/ब्यापी वियोग ब्यथा है अपार ये।/भूषन सेज सिंगार छुट्यो,/यमुना चख काजल लागत भार ये।।/देखत ही भय होत निसेस निसा,/ऋतुराज की मानो पहार ये।/फूल पलास की डारन पै,/जनु काम धर्यो हैं अधूम अँगार ये।।’-जमुनाप्रसाद ओझा, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 20; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 184। (ख) सरद जुन्हाई रास बिरच्यो कन्हाईलाल,/ताको कवि केते मनमाने गथ गायो है।/यमुनाअनोखी बात मन में बिचार्यो कछु,/भौंहन कमान सर निगह जनायौ है।।/स्यंदन सिंगार पै सवार हो सलोने स्याम,/सेना सु समूह सुख सुखमा बढ़ायो है।/गोपिन मनोज-पीर-शत्रु को दुरायबे को,/बन-रन-भूमि बीर रूप धरि आयो है।।’-जमुनाप्रसाद ओझा, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 6; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 184-85
38. ‘जागि है सोहाग अरु भाग नव प्रेमिन के,/पौढ़े परजंक दोउ प्रेम के अकोरे में।/नये नये ढंग सो मनोज के तरंग बीच,/प्यारे रस बात करी चाहैं गहि कोरे में।।/टारी कछु घूँघट पै प्यारी अंग मोर मोर,/करत है नाहिं नाहिं सीस के मरोरे में।/नासामणि झूमत में आनन सोहात जनु,/सीपज हिलोरैं कलधौत के कटोरे में।।’-द्वारकप्रसाद पाठक, समस्या-पूर्ति’, कवि-समाज, पटना, चैत्र-सुदी, शनि, संवत 1854 विक्रम; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 188
39. ‘नन्द के सदन आजु आनन्द-बधावा भेलो,/चलु देख पूरि रहै शब्द तात थैया को।/बन्दी वेषधारी खड़े अज त्रिपुरारी आज,/सुजस उचारै महाराज नन्दरैया को।।/करैं गान नारी दै मृदंगन पै तारी नन्द,/द्विजन हँकारी देत बसन रुपैया को।/अर्ध-निसि बीतै कृष्ण-अष्टमी दिवस बुध,/रोहनी नछत्र जब जनम कन्हैया को।।’-देवी अवस्थी, समस्या-पूर्ति’, पटना, सन् 1897 ई., पृष्ठ 19; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 192
40. (क) चामीकर चम्पक की दीपक की केसर की,/रोचन की चारुता गुराई लई गोरी की।/देवी कवि चारु चतुराई कंज कोमलाई,/छोभा मन लोभा गई सोभा लै अँजोरी की।।मोतिन की पानिय लै सुमन सुगंध स्वच्छ,/बसुधा भरै की छवि लैकै इक ठौरो को।/काम-कामिनी की दामिनी की विधि सूरति लै,/मूरति बनाई जनु कीरति-किसोरी की।।’-देवीशरण, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी 1890 ई., पृष्ठ 5; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 194। (ख) पगन पैजनी बजति मधुर सुर,/मधुलिह करत मनहु झंकार,/कटि अति खोनी निपट नवीनी,/लफति लगी सी उरजन भार।/मुकुत माल उर बर पर राजति,/मनु गिरि सिर सुर सरिता धार,/मम मन बरबस परबस परिगो,/लखिया के सिंगार बहार।।’-देवीशरण, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी 1897 ई., पृष्ठ 13; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 194। (ग) छत अधरान मैं गये हैं किहि कारण तैं/सारी नील पीत करि कौन करतार है।/देवी कवि कहै पास काके रमि आई प्रात,/मो सो कहु साँची वह कौन दिलदार है।।/भेजी अधिरात तक मैं खोय सब रात आई,/गात तैं गिरत श्रम-सीकर अगार है।।/हाली-हाली आवत उताली चली आली काहे,/कहति न पायो कहा आनन्द अपार है।।’-देवीशरण, समस्या-पूर्ति’, पटना, मई, 1897 ई., पृष्ठ 11; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 195
41. (क) कैसी सुसील अहै सखी री,/पिय को नहीं काज बिसारति है,/पीय कहै सो करै छिन में,/नहिं आलस चित्त में धारति है।/आवत पीय जो बाहर सों,/तो नारायण पायँ पखारति है,/याकी बखान कहाँ लौ करों,/पिय छाडि न काहू निहारति है।।’-नारायणदास, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 7; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 203। (ख) मान किहि कारन कै बैठि रही प्यारी आज,/गोपनो भलो है नाहि याहि तू विचारि लै।/कहत नारायण जू मों ते तो बतावै साँचि,/करिहौं उपाव बेगि या सो दुख टारिलै।।/रहैं तेरे पैर अबै प्रीतम बोलाय ल्याऊँ,/आपने पिआरे गरे माँहि बाँहि डारि लै।।/मंद मुसुकाय हुलसाय बतराय अबै,/साँवरि सलोनी छबि नैननि निहारि लै।।’-नारायणदास, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 7; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 204
42. (क) छोड्यो प्रह्लाद नहि आठो जाम रामराम,/बालापन हीं सो ध्रुव छोड्यो न रमैया को।/छाड्यो गज गनिका अजामिल न छाड्यो नाम/छाड्यो नहिं सेवरी त्यों संभु ही बसैया को।।/छाड्यो नहिं नारद जू सरन गोविन्द जू की,/छाड्यो नहिं गोपी-मन रास के रचैया को।।/प्यारे जौं न चाहों फेरि जननी प्योद-पान,/छाँड़ो जनि ध्यान भरि जन्म कन्हैया को।।’-प्यारे मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 213। (ख) निकलंक मयंक में आजु कलंक,/लग्यो है कहाँ कहै बात सही,/यह कंज कली कुम्हलानी कहाँ,/गति काहे मराल की जात रही।।/बहरावति आजु लौं मोंको अरी,/पर साँच छिपाये छिपाय कहीं,/आनि तेरो सुहाग को भाग अली,/एहि भाग की दूजी दिखात नहीं।।’-प्यारे मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 9-10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 213
43. ‘प्यारी सेतसारी तेरी सोई परवाह जल,/अंग की दीपति दुति दामिनी दिखात है।/बेसरि बन्यो है सोई खासी सुरराज चाप,/किंकिनी सबद सोई झींगुर झनकात है।।/हरे-लाल-पीत-स्वेत फूल जो सुअंग सोहैं,/सोई पुष्प-बाटिका की सोभा सरसात है।/कहै प्रभुनाथ श्रीराधिका सो बार-बार,/प्यारी तेरे अंग ही मों रितु बरसात है।।’-प्रभुनाथ मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, जून, 1897 ई., पृष्ठ 11; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 217
44. ‘कारी प्यारी घटा घिरि आई चहुँ ओरन ते,/बहै सुखदाई वायु गंधन झकोरे में।/कहै विप्रबद्रीलखि बिज्जु की चमक तब,/कामिनी रूठी है हरिप्रीतम-अँकोरे में।।/ताही समै प्रीतमहूँ अंकनि लगाय तिहि,/चित्त हरखाय रहै आनँद हिलोरे में/दोऊ पुनि हिलिमिलि झूलन लगे हैं तहाँ,/उमगि-उमगि करि हेम के हिंडोरे में।।’-बदरीनाथ मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, जुलाई, 1897 ई., पृष्ठ 19; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 221
45. ‘देखत ही आई आजू मथुरा की शोभा कुंज,/कहत बनै है नाहि मति मेरी भोरी की।/होती है तयारी साज बड़ी रास शोभा काज,/देर क्यों है समूह बहु सुन्दर सुगोरी की।/बाजत मृदंग आदि गावत हैं चारु पद,/चलो री सहेली साथ देखूँ ओप जोरी की।/ऐसी सु सलोनी छवि कबहूँ न पाई नाथ,/चित्र भई कहबे को कीरति किशोरी की’-बाबूनाथ आर्य, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1897 ई., पृष्ठ 18; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 229
46. ‘बिनु बृजराज रितुराज की जुलूस देखो,/वन-वन बाग अनल बगार ये।/भनत बिहारी तापै शीतल सुगन्ध मन्द,/पवन जगाय देत करत बिगार ये।/कोकिला को पंचम अलाप ललकार मानो,/मदन महीपति के सैनिक ठगार ये।/फूले हैं अनार कचनार नहि येरी वीर,/मेरे जिय जारिबे को अधूम अंगार ये।।’-बिहारी सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 18-19; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 231
47. ‘कठिन कमान तान छाड़त अनेक बान,/दसहूँ दिसान जौन बूँद सों झरत है।/परिथ कृपान सूल तोमर परसु आदि,/बिबिध प्रकार लेइ निश्चर लरत हैं।।/पादप पहाड़ को उठावै कपि रिच्छ जौन,/तेऊ घबराय तबै भूतल परत हैं।/अति विकराल घननाद युद्ध कीन्हों तऊ,/लक्ष्मण सुजान पाँव पाछे ना धरत हैं।।’-ब्रजमोहन बटुक, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 240-41, 289
48. ‘भावति बाँह धरे जब भावत,/ना पिय ना कहि नैन घुमावै।/चुम्बन में मुख फेरति है,/पर देखि पिया-मुख आनंद पावै।/सी-सी करै कुच के परसे,/पर नेक नहीं तन बल्लि हिलावै।/रतिभाव से लाजति ब्रह्मलला,/पर सेज को छाड़ि नहीं कहि जावै।।’-ब्रह्मलाल मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 13; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 242-43
49. ‘वाटिका सिँगार में वसंत अवतार मानो,/ठाढ़ि फल फूलन सों भर निज डार-डार।/लिये निज साजबाज आयो है बसन्तराज,/फेलि गयो कानन के मध्य अरु बार-बार।/पवन-झँकोरन तें लतिका लपटि जात,/हिलि-मिलि करें एक-एकन सों लार-प्यार।/लता हरियाली अरु कोकिला के उच्च स्वर,/हरि एते दल्ल सोहैं संग सोहैं नौ बहार।।’-भगवानशरण पाण्डेय, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 25; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 242-43
50. ‘सोई बसन्त चइत चाँदनी है सोई आली,/जमुना निकुंज सोई सोई बनवारी है।/मलय-समीर सोई मन्द मुसकान सोई/सोई मैं सकल सखि नाहीं कछु न्यारी है।/पै यह तथापि कछु और ही लखात बात,/जानी नहीं जात कदरात गात सारी है।/जानौं नाहिं काह यह आय ठहराय मन,/भई मैं गँवारी अब सब ही बिसारी है।’-महावीर पाण्डेय, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 253
51. ‘रे सठ रावन तोहि कही यह बात,/सत्त हिया यों विचारि लै।/बालि हते जेहि एक ही बान ते,/मारे हैं दूषण को निरधारि लै।/सोइ महेन्दर ईश अरे सँग,/वील की सैन है आये अपारि लै।/सीय को संग लै जाय के मूढ़,/पदाम्बुज आज तू नैन निहारि लै।।’-महेन्द्रनारायण वर्मा, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, सन् 1897 ई., पृष्ठ 23; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 255
52. ‘असित पहाड़ जो ये सुन्दर सियाही होय,/नीर-निधि-पात्र जो अथाह दरसत है।/सुरतरु साखा कर लेखनी बनावे बहु,/पत्र मानो सप्तद्वीप-मही जो लसत है।/यदि सतबानी सर्वकाल लिखतेइ रहै,/तदपि न सिव-गुन लिखि सो सकत है।/तौहू मुखलालहरदास लघु क्यों न होय,/गुण बरने में पाँव पाछे ना धरत है।।’-मुखलाल राम गुप्त, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, सन् 1897 ई., पृष्ठ 23 (यह अनुवाद निम्नलिखित श्लोक का है: असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे/सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।/लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं/तदपि तव गुणानामीश पारं न याति।।’ (महिम्नस्तोत्र); हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 259
53. ‘सोहत है कच श्याम घटा,/चपला दुति दंतन सी दरसात है।/आहि को शब्द मनो घननाद,/उसाँस चलै झकोरत बात है।।/भूषण के नग सो जुगनू कण/स्वेद चुबै सोई बूँदन पात है।/केलि करै तिय यों रघुनाथसो,/आनन्ददायक ज्यों बरसात है।।’-रघुनाथशरण सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, सन् 1897  ई., पृष्ठ 13; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 270-71
54. (क) कोकिल चकोर मोर सोर चहुँ ओर करै,/सारिका सुकीर गावै सैन बेसुमार लै।/त्रिविध समीर ऋतुराज के मनोज जनु,/आयो विश्व विजै हेतु वाटिका गोहारि लै।/तेहि काल जनक लली को साज साजि भली,/पूजिबे भवानी चली सखी फुलवारी लै।/चन्द्र छवि छोरी मिथिलेश की किशोर येइ,/लखन ललाजू नेक नैनन निहारि लै।।’-राजपति तिवारी, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, सन् 1897 ई., पृष्ठ 23; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 275। (ख) फूली सुकेतकी केवड़ा जूही चमेली ओ बेलि नवेली बहार है।/कोकिल कीर कपोत सुराजित भौंर अनेकन हार गंजार है।/शीतल मंद समीर झकोर झुकी नव बेलि प्रसूनन भार है।/श्रीमिथिलाधिप के वर बाग सुराजबिलोकि आनन्द अपार है।।’-राजपति तिवारी, समस्या-पूर्ति’, पटना, मई, सन् 1897 ई., पृष्ठ 16; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 276
55. (क) कोप करि विधि पै मुनीस अति कौशिक जूं,/चीनी कीती सृष्टि सबैं लखत मनोज हैं।/एकहू तुलीना औ बढ़ेगी कहाँ विश्वनाथ,/अद्भुत अनूप सृष्टि कीनी पैं मनोज हैं।/और का बताऊँ नेक एक ही विचारि देखो,/कैसे करामाती यार तिय के उरोज हैं!/सिसिर छुड़ावै सीत भीत वही ग्रीषम में,/हीतल मैं लागै मनो सीतल सरोज हैं।।’-विश्वनाथ झा, समस्या-पूर्ति’, पटना, चैत्र सुदी 1, शनिवार, संवत 1954 विक्रम; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 297। (ख) कारे कजरारे द्रिग चुंबन चहत स्रौन,/लीनी छवि छीनी कंज खंजरीट जोरी की।/नासिका लुनाई मद तिल शुक तुच्छ कीनी लट,/घुंघरारी हारी अबली सुभौरी की।/उरज उतंग गज कुंभन गरज तोर्यौ,/धनुष घमंड लखि भृकुटी मरोरी की।/पड़त पलौ ना चैन विश्वनाथ देखे बिन,/भूतल छिनोना छवि कीरति किशोरी की।।’-विश्वनाथ झा, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1897 ई., पृष्ठ 6; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 297-98। (ग) मुख पंकज रद कुन्दकलि, भमर अलक घुंघरार,/नास कीर सुबैन पिक, बदन बसन्त बहार।/कुच उन्नत नखछत ललित, कलित सुहीरक हार,/मनु शशि शेखर सीस पै, गंग तरंग बहार।।’-विश्वनाथ झा, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 297-98
56. ‘यदि चाहत हौ बलवान भये,/भजते कस ना हनुमान बली को।/पुनि देह पवित्तर जौ तू चहो रज,/लेपहु जा गोकुला की गली को।/नित साधुन संग हरिचरचा,/करि जन्म जमाओ है बात भली को।/जनकृष्णकहे निरवान चहौ/पद सेवहु तो वृषभान लली को।।’-शिवनारायणदास कृष्ण’, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 23; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 314
57. ‘मूरख अन्ध अभागे सोइ जित,/काई विषै मन लाग रही।/लम्पट कूर विशेष छली,/स्वपनेहुँ न संत सभा तक ही।।/सूझत लाभ न हानि जिन्हें,/तिन वेद असम्मत बात कही।/दर्पन धूमिल नैन बिना,/‘सिवरामस्वरूप दिखात नहीं।।’-शिव प्रसाद, समस्या-पूर्ति’, पटना, दिसम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 16; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 315
58. (क) पति के गृह आवत हीं तिय के,/दुगुनी सुख सम्पत्ति छाइ गई।/बिनसो सब औगुन ग्राहकता,/गुन ग्राहकता तिमि आइ गई।।/अबिचार अमंगल दूर भज्यो,/व्यभिचार लता मुरझाई गई।/बनिता सब पास परोसहुँ को,/पति सेवन की सिख पाइ गई।।’-श्रीकांत मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 1; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 325-26। (ख) न वे पुहुप परिमल न वे, न वे पल्लवित डार।/न वे पराग मलिन्द अब, गई सुबीत बहार।।/उठत हिये मों सूल, लखि बसन्त के साज सब।/इन्हें न जानो फूल, सखि अधूम अंगार ये।।’-श्रीकांत मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 19-20; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 326। (ग) भूल न आँगन आवति है,/कहै कृष्ण करै सबकी सेबकाई।/डाह करै नहि सौतिहूँ सो,/कबौ मान की रीत नहीं दरसाई।।/प्रीत रखे पति सो अतिहीं,/लखि रूप रतीहूँ रहे सकुचाई।/भाग बड़ो वहि पीतम को,/जिन ऐसी सुसील सोहागिन पाई।।’-श्रीकांत मिश्र, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 24; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 326
59. (क) भादव अष्टमी रैन अन्धेरी,/दिखात नहीं कहुँ चन्दकला है।/अर्द्धनिशा प्रगट्यो सुखकन्द,/सुफैलि गई द्युति ज्यों चपला है।/कुंडल की सुक्रीटहूँ की,/विधुमण्डल तें मुख और भला है/संत कहै नहिं नेक जानत हैं,/चन्द है धौं मुख नन्दलला है।।’-सन्तप्रसाद सन्त’, समस्या-पूर्ति’, पटना, जनवरी, 1897 ई., पृष्ठ 16; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 329-30। (ख) आई है बरात जबै राम की विदेह ग्राम,/देवन मुदित होय फूल बरसायो है,/कोऊ हैं सबार रथ पालकी सुहाथिन पै,/कोऊ सुतुरंग फेरि संत को लुभायो है।/जाहि बरबाजि राम आए हैं सबार आज,/ताको लखि अश्व रविरथ को लजायो है।/मानो मैन बाजि पै सवार राम-ब्याह-काज,/जनकपुरी में बीर रूप धरि आयो है।।’-सन्तप्रसाद सन्त’, समस्या-पूर्ति’, पटना, सितम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 330
60. ‘नारी नई नव नेह रँगी,/पिय प्रेम पगी मन काइक बानी।/प्रीतम को निसिबासर देख,/अनन्द अखंड न आँखें अघानी।।/आयस जो सो करे गुरु लोग,/की जानि पुनी पिय की मनमानी।/धन्य सुभाग अहै उनको,/पतनी जिन पायो है सील की खानी।।’-सहदेव लाल, समस्या-पूर्ति’, पटना, अप्रैल, 1897 ई., पृष्ठ 24; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 332
61. (क) आये न कंत मेरो सजनी, यह आया वसन्त है काल कराल सों।/सीतल मन्द सुगन्धित मारुत, लागत हैं मोहि अंग मो ज्वाल सों।/कैसे बन्धु अब याहि सों नाथ, अनाथ के नाथ हैं हाल बेहाल सों।/प्राण मेरो जब जावहिंगे, कस सो उंगी लाग मैं लाल के गाल सों।।’-सूर्यनाथ मिश्र नाथ’, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 336। (ख) पति के मनभावन काज करै, मद रोस नहीं मधुरी बतियाँ।/जप पूजन पाठ न जानै कछू, रखै स्वामि को ध्यान दिया रतियाँ।/करती सेवकाई सदा चित दै, सजनी लखिकै हुलसै छतियाँ।/बिनु भूषण भूषित अंग लसै, अहै नाथलाख में एक तियाँ।।’-सूर्यनाथ मिश्र नाथ’, समस्या-पूर्ति’, पटना, मार्च, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 336
62. (क) होरी केर बहार में, जिन जा बहार द्वार/तूँ आई नवलाबधू, कोउ दैगो रंग डार।।/कोउ दैगो रंग डार, मार प्रीतम सो खइहो/होवेगी उपहास, स्वकुल के नाम नसैहो/कह हरखू समझायकै, झांझ बजा झनकार,/दैहैं गारी ग्वार सब, होरी केर बहार।।’-हरख सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 25; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 338। (ख) फूलन के साज भयो भ्रष्ट कहो काहे आज,/सकल सिंगार बिपरीत दरसात है।/आई हौ लगाई कहा अंजन अधर बाल,/नैनन के बीच पीक खूब ही लखात है।।/कारे उलझाने वार नागिन समान मानो/चाखिबे को सुधा तेरो मुख पै झुकात है।/दाग नख देखिकै उरोजन पै चिन्हित हौं।/मोहन सो संग भई कहो कहा बात है।।’-हरख सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 338-39। (ग) धौस को कैधों बिताई के मोहन,/सांझहिं को जुरै कुंजन धाइके।/पाये नहिं राधिका को हरि/बंसी फुंकी तेहि नाम को गाइके।/तान सुनी वृषभान लली/तब सोंचि सहेट परी अकुलाइके।/पीत भई मुख सीत भई,/तन नीर बह्यो चष चैंधि लगाइके।।’-हरख सिंह, समस्या-पूर्ति’, पटना, फरवरी, 1897 ई., पृष्ठ 12; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 339
63. (क) ल्याइ नन्दवाले काहू भाँति हौं मनाय बीर,/हृदै मों लगाय प्यारी हौस को निकारि लै।/गरे गर लाय भुज बंधन लगाय कसि,/हाँसी करि गाँसी हिय सौतिन बिदारि लै।/कीजिए न तीखी भौंह हरिकन्त की है सौंह,/मीठी बतराय प्रेम पूरण पसारि लै।/पीत पटवारे घुँघरारे लटकारे धारे,/ऐसे प्राणप्यारे नीके नैनन निहारि लै।।’-हरिकान्तनारायण चैधरी, समस्या-पूर्ति’, पटना, मई, 1897 ई., पृष्ठ 19; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 339-40। (ख) राम अभिराम गुणधाम बिनु काम भजु,/गावत पुराण जाके जस बिसतार है।/कोमल सुअंग जाके नीरद सो रंग जाके,/जानकी है संग जाके सोभा की बहार है।/लम्ब भुजदण्ड जाके कीरति अखण्ड जाके,/पुरित ब्रह्माण्ड जाके चरित उदार है।/दुष्ट देखि खीझे मन साधुन के रीझे,/‘हरिसाइगहि लीजै यामें आनन्द अपार है।’-हरिकान्तनारायण चौधरी, समस्या-पूर्ति’, पटना, मई, 1897 ई., पृष्ठ 10; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 340। (ग) परम प्रमोद पाए पुत्र देखि नन्दराय,/आनन्द उछाह में भुलानो मन मैया को।/उछव बधावा गेह गेह नित होन लागे,/दूरि कियो दुःख हरिब्रज के बसैया को।/कंस की निसंकता भुलानी अति संक पाय,/प्रबल प्रताप देखि देखि जदुरैया को।/अष्ट सिद्धि नवो निद्धि ब्रज में बिराजमान,/जब तें भयो है सुभ जनम कन्हैया को।।’-हरिकान्तनारायण चौधरी, समस्या-पूर्ति’, पटना, अगस्त, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 340। (घ) लड़त प्रचारि पणै करि के प्रचण्ड बीर,/धीर धरि धाय बैरी भीर में परत हैं।/तीर तलवार तन तोमर लगेते और/बीर रस बढ़े जात नेकु ना डरत हैं।।/अड़त अकेले अहै अमित अनि के संग,/टरत न टारे रिपु रज सम करत हैं।/मेघनाद आदिक अनेक बीर भीर तहाँ,/एक कपि बीर पाँव पाछे ना धरत हैं।।’-हरिकान्तनारायण चौधरी, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 9; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, पृष्ठ 341
64. (क) जौन पाँव लंकपुर जाइ के सुजान राम,/रावन संहारि कियो सुचित भगत हैं।/धरिकै अनेक रूप जौन पाँव जाइ जाइ,/संतन बचाइबे को दुष्ट सों लरत हैं।/कैटभमधू में उतपाती को गरूर धूर,/जौन पाँव करत सुमेदिनी रचत हैं।/रविसे अनाथ को अगाध भवकूप पड़े,/देखि रछिबे में पाँव पाछे ना धरत हैं।।’-रघुवीरशरण प्रसाद, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 16; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ, परिशिष्ट 6, खंड, पृष्ठ 486। (ख) घट सों एक टोप विराजत है,/सिर पै रँगरेज सो गात नहीं।/सुग्रीव सुशोभित कालर से,/कसे कोट बिना कहुँ जात नहीं।/घुटनों तक बूट ओ हाथ छड़ी,/मुख चूरट आग बुझात नहीं।/संग स्वान फिरे चढ़ि फीटन पै,/पर पास में देवि दिखात नहीं।।’-रघुवीरशरण प्रसाद, समस्या-पूर्ति’, पटना, अक्टूबर-नवम्बर, 1897 ई., पृष्ठ 14; हिन्दी साहित्य और बिहार’, चतुर्थ खंड, परिशिष्ट 6, पृष्ठ 486